Sunday, February 26, 2017

योगी आदित्यनाथ का कठेला बाज़ार में आगमन



न्यूज़ साभार : ABP न्यूज़ 
पोस्ट : राज कमल त्रिपाठी 

Friday, February 10, 2017

किस्सा कुर्सी का सिद्धार्थनगर (शोहरतगढ़ विधानसभा)


साभार : इण्डिया न्यूज़ 
पोस्ट : राज कमल त्रिपाठी 

नुक्कड़ बहस - सिद्धार्थ नगर : कौन मारेगा बाजी ?



साभार : ABP News
पोस्ट सौजन्य : राज कमल त्रिपाठी 

Thursday, February 2, 2017

यदि उम्मीदवार पसंद न आए तो आपके पास है नोटा (NOTA) का है अधिकार

यदि आपको किसी भी पार्टी का उम्मीदवार पसंद न आए फिर भी आप वोट करें लेकिन अपना मत गलत व्यक्ति को न दे इस स्थिति में आपके पास है नोटा (NOTA) का  अधिकार| क्या है नोटा बता रहे हैं गूगल सर्टिफाइड आई टी प्रोफेशनल राज कमल त्रिपाठी | भ्रष्टाचार के कारण युवा मतदान नहीं करना चाहता है। लेकिन उसके मत की जगह कोई दूसरा न डाल दे इसलिए वोट करना भी ज़रूरी है।

क्या है नोटा

 भारतीय लोकतंत्र हर नागरिक को मतदान का अधिकार देता है। चुनाव के दौरान हर मतदाता को अपने पसंद के किसी एक उम्मीदवार को मत देना होता है, लेकिन अगर किसी मतदाता को उसके क्षेत्र में खड़ा कोई उम्मीदवार पसंद नहीं है तो वह ‘नोटा’ के जरिये सभी उम्मीदवारों को नापसंद कर सकता है। इसके लिए चुनाव आयोग ने ईवीएम में एक नोटा बटन लगा दिया। इस बटन को दबाने वाले मतदाताओं को चुनाव में खड़ा कोई उम्मीदवार पसंद नहीं है।


आठ नौ साल की अदालती लड़ाई के बाद ये अधिकार आपको हासिल हुआ है। पीयूसीएल संस्था ने 2004 से इसकी लड़ाई लड़ी है। डॉक्टर विजय लक्ष्मी मोहंती रमनीत कौर ने नोटा पर एक शोध पर्चा लिखा है। 2014 के लोकसभा चुनावों में पहली बार नोटा का आगाज़ हुआ था। इन चुनावों में बिहार में 5 लाख 81 हज़ार 11 मतदाताओं ने किसी दल के उम्मीदवार को पसंद नहीं किया। गुजरात में चार लाख 54 हज़ार 880 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। यहां तक कि वडोदरा सीट पर 18,053 मत नोटा के पड़े थे। इस सीट से भी प्रधानमंत्री मोदी उम्मीदवार थे।

चुनाव पर नही होगा कोई असर 

जनप्रतिनिधियों के आचरण से क्षुब्ध मतदाताओं द्वारा सामूहिक रूप से वोट न देने का फैसला करने के कई उदाहरण हाल के वर्षों में दिखने को मिला है। ऐसे मतदाताओं के लिए यह फैसला एक कारगर हथियार बन सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद राजनीतिक दलों पर साफ सुथरे और संवेदनशील प्रत्याशी चुनने का दबाव बढ़ेगा। कायदे से यही इस फैसले का सबसे प्रासंगिक पहलू है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी का भी मानना है कि पार्टियां इस फैसले पर ध्यान देंगी और साफ-सुधरी छवि वाले उम्मीदवारों को चुनाव में उतारेगी। वैसे इस फैसले के बाद कई बातों को लेकर संसय भी है। न्यायालय ने इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं किया है कि नोटा के तहत डाले गए वोटों की संख्या अगर सबसे ज्यादा वोट पाने वाले प्रत्याशी से अधिक हो तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? या फिर कुल मतदाताओं में से 50 फीसद से अधिक मतदाता नोटा का इस्तेमाल कर लें तो क्या होगा? अहम सवाल यह भी है कि अगर ऐसी स्थितियां उत्पन्न हती हैं तो क्या इसका असर चुनाव नतीजों पर भी पड़ेगा?

इसका जवाब है कि ऐसी स्थितियों से चुनाव परिणाम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यहां तक कि अगर 100 में से 99 नकारात्मक वोट पड़ जाएं तो भी बाकी बचा एक वैध वोट पाने वाला उम्मीदवार विजय घोषित हो जाएगा। बाकी 99 वोट अवैध होंगे। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि अगर इससे नतीजों पर कोई फर्क नहं पड़ेगा तो इस सारी कवायद का क्या लाभ? चुनाव आयोग ने सबसे पहले यह मांग क्यों उठाई थी? चुनाव आयोग की तरफ से नोटा बटन शामिल करने के पीछे मुख्य वजह यह सुनिश्चित करना था कि सभी उम्मीदवारों को खारिज करने वाले मतदाताओं को गोपनीयता बनी रहे और फर्जी मतदान न हो सके।
दरअसल नियम 49 ओ का इस्तेमाल करने वालों की पहचान गोपनीय नहीं रह पाती। 1998 में ईवीएम आने से पहले तक नकारात्मक वोटिंग करने वालों की पहचान गोपनीय रहती थी। ऐसा करने वाले खाली मतपत्र बैलेट बाक्स में डाल देते थे। कई लोग तो जानबूझकर मतपत्र को अवैध बनाने के लिए एक से ज्यादा चुनाव निशान पर मुहर लगा देते थे। ईवीएम के आने के बाद इस नाकात्मक वोटिंग की गोपनीयता खत्म हो गई। बटन दबाने पर एक बीप की आवाज होती है जो पूरे पोलिंग बूथ के साथ-साथ बाहर भी सुनाई देती है। अगर बीप नहीं सुनाई दे रही है तो इसका मतलब यह है कि अंदर गए व्यक्ति ने वोट नहीं डाला है, यह बात सभी को पता चल जाएगी। दरअसल गोपनीयता का सिद्धांत स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव का अभिन्न हिस्सा है। नकारात्मक वोटिंग को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है मतदाता अनेक वजहों से मतदान से दूर रह सकता है। संभव है कि उसे लगता हो कि ऐसा कोई उम्मीदवार नहीं है जो उसका मत पाने योग्य हो। ऐसे में उसके सामने एक विकल्प है कि वह मतदान ही न करे, लेकिन एक जिम्मेदार और ईमानदार नागरिक के लिए यह उचित विकल्प नहीं है। ऐसे में ईवीएम में नोटा बटन लगाना एक बेहतर विकल्प हो सकता है जिससे मतदाता अपने हक का इस्तेमाल कर सकें।