Thursday, August 31, 2017

एक और मुसीबत आएगी

बाढ़ खत्म जैसे होगा एक और मुसीबत आएगा।
यह प्रशासन फिर पिछली सरकार पे दोष लगाएगा।।

अब दूषित पानी होगा, मरे पशु सड़ जाएंगे।
आबो हवा बिगड़ जाएगी और रोग फैलाएगा।।


बीमार पड़ेंगे बूढ़े बच्चे कहो कहाँ तुम जाओगे।
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की हालत जस की तस तुम पाओगे।।


नहीं डॉक्टर नहीं दवाई, एम्बुलेंस में नहीं है तेल।
वर्षों से हम जनपद वासी ऐसी जिल्लत रहे हैं झेल।।

बीमारी से तड़फ तड़फ जब फिर बच्चे मर जायेंगे।
जाँच एक और फिर बैठेगी, दोषी ढूढ़े जाएंगे।।

कुछ होंगे निष्काषित और कुछ पैसा दे बच जाएंगे।
लाचार बने हम कंधों पर बस नन्ही लाश उठाएंगे।।

पिछली सरकार निकम्मी थी चलो ये हमने मान लिया।
बाढ़ बिपत में देख लिया, इस शासन ने क्या काम किया।।

7 का आलू 14 में ले साहब हमको बाट रहे।
भूखे पेट पड़े हैं हम, वो दूध मलाई काट रहे।।

पिछली सरकारों का साहब रोना-रोना बन्द करो।
बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य का अब तुम तो प्रबन्ध करो।।

सब सरकारें ऐसी ही हैं, इस सत्य बात को मान लो तुम।
बचना खुद ही इस बिपदा से , ये अपने मन मे ठान लो तुम।।

कविता में जो बात कही है उन बातों पर करो अमल।
खुद रक्षा करना सीख लो अपना, सच कहता है *राज कमल*।।

इस कविता को बिना छेड़छाड़ किये मूल रुप से शेयर कर अपने प्रियजनों को सतर्क कर दें।
*राज कमल त्रिपाठी*
7570901369

Monday, August 28, 2017

सिद्धार्थ नगर में बाढ़ के हालात को बयाँ करती यह कविता (इसी लिए चुप रहते हैं !)

सिद्धार्थनगर की जनता हूँ, देख मेरे हालात ।
फसा बाढ़ में तड़फ रहा हूँ, किसे बताऊँ बात।।
किसे बताऊँ बात मुझे कुछ समझ न आए।
अपना दुखड़ा जनपद वासी किसे सुनाएं।।
डूब गया है भाई मेरा, डूब गया घर द्वार।
नाव से पिकनिक मना रहा है साहब का परिवार।।
घर से बाहर बन्धों पर, हम अपना दिन काट रहे।
नाव पे बैठ विधायक जी बस लईया भूजा बाट रहे।।
सी एम योगी को भी है, लापरवाही बर्दाश्त नहीं।
पर उनके आने से भी हमको राहत कोई खास नहीं।।
इटवा के एक विधायक जी राहत सामग्री बाट रहे।
बात सुनी है वो अपने जूतों से चीजे जाँच रहे।।
उसका ब्लॉक के लोगों ने तो, राहत शब्द को शर्मसार किया।
राहत सामग्री देने को पीड़ित से रुपया मांग लिया।।
पाल हमारे सांसद हैं, पर हमको ऐसे पाला है।
10 दिन से भूखे तड़फ रहे हम, घर में नहीं निवाला है।।
इसको कबिता मत समझो तुम, बात कही ये सच्ची है।
तड़फ रही माँ की ममता, रोती जब उसकी बच्ची है।।
अरे विधायक जी खुद को, सेवक कहना बन्द करो।
भूखे बच्चे बिलख रहे हैं उसका कुछ प्रबन्ध करो।।
मन में बड़ी वेदना थी, कविता में सब लिख डाला।
बुरी लगे तो क्षमा करें, जो सही लगा वो कह डाला।।
हम पर ऐसी बिपत पड़ी तो, आज कमल क्यों सोया है।
देख दुर्दशा गावँ की ऐसी *राज कमल* भी रोया है।।
राज कमल त्रिपाठी
7570901369