Monday, August 28, 2017

सिद्धार्थ नगर में बाढ़ के हालात को बयाँ करती यह कविता (इसी लिए चुप रहते हैं !)

सिद्धार्थनगर की जनता हूँ, देख मेरे हालात ।
फसा बाढ़ में तड़फ रहा हूँ, किसे बताऊँ बात।।
किसे बताऊँ बात मुझे कुछ समझ न आए।
अपना दुखड़ा जनपद वासी किसे सुनाएं।।
डूब गया है भाई मेरा, डूब गया घर द्वार।
नाव से पिकनिक मना रहा है साहब का परिवार।।
घर से बाहर बन्धों पर, हम अपना दिन काट रहे।
नाव पे बैठ विधायक जी बस लईया भूजा बाट रहे।।
सी एम योगी को भी है, लापरवाही बर्दाश्त नहीं।
पर उनके आने से भी हमको राहत कोई खास नहीं।।
इटवा के एक विधायक जी राहत सामग्री बाट रहे।
बात सुनी है वो अपने जूतों से चीजे जाँच रहे।।
उसका ब्लॉक के लोगों ने तो, राहत शब्द को शर्मसार किया।
राहत सामग्री देने को पीड़ित से रुपया मांग लिया।।
पाल हमारे सांसद हैं, पर हमको ऐसे पाला है।
10 दिन से भूखे तड़फ रहे हम, घर में नहीं निवाला है।।
इसको कबिता मत समझो तुम, बात कही ये सच्ची है।
तड़फ रही माँ की ममता, रोती जब उसकी बच्ची है।।
अरे विधायक जी खुद को, सेवक कहना बन्द करो।
भूखे बच्चे बिलख रहे हैं उसका कुछ प्रबन्ध करो।।
मन में बड़ी वेदना थी, कविता में सब लिख डाला।
बुरी लगे तो क्षमा करें, जो सही लगा वो कह डाला।।
हम पर ऐसी बिपत पड़ी तो, आज कमल क्यों सोया है।
देख दुर्दशा गावँ की ऐसी *राज कमल* भी रोया है।।
राज कमल त्रिपाठी
7570901369

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